प्रकृति ने इस श्रृष्टि में अपनी सर्वोत्मकृति में मानव को बनाया,इन्हे ना केवल जीवन यापन हेतु सबल ,सवे गुण सम्पन्न बनाया ब्लकि बुद्धि व विवेक से अलंकृति भी करते हुए संसार के रंग मंच पर भेजते हुए स्वयं अदृश्य रहते हुए ,जीवन के कुछ पल दिये,जाओ वत्स ,
ज़िंदगी एक नाटक है ।हम सब उस नाटक में काम करते हैं ।कभी कभी नाटक के भीतर भी एक नाटक चलता रहता है ।ऐसे ही किसी मोड़ पर मझे रंगकर्म से मेरा रिश्ता बना । जीवन के रंगमंच पर अन्य रंगकर्मी के साथ भी डूब कर काम किया । इस एपिसोड में नियति प्रवाह का ज़िक्र और कुछ बड़े अच्छे रंगकर्मी तो कभी खलनायक के रूप में चरित्र के संग कुछपल विताये, कभी मित्र कभी शुत्र कभी भाई ,तो बन्धु वान्धवो के संग विताये ,इस क्रममें काल चक्र के चक्रं विहु में अपने आपको असहाय पाया ।
काल के कालांतर में एक मित्र ने एक रेडियो हमें उपाहार स्वरूप भेट दी, इस क्रम में मित्र के भेट ने नीरसता में संगीत की सरसता घोलने प्रारम्भ की,कभी काला पानी फ़िल्म का आशा भौंसले की आवाज़ में यह गीत कौन भूल सकता है – नज़र लागी राजा तो रे बंगले पर ।इसके अलावा मोहम्मद रफ़ी का पहला गीत ।नूरजहां के साथ – यहां बदला वफा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है और मुबारक बेगम का गीत कभी तन्हाइयों में भी हमारी याद आएगी जैसे गीत सुनिए इस एपिसोड में ।
आपको आनंद आएगा । आज जब सम्पूर्ण विश्व कोरोना जैसी वैशिवक बीमारी के दंश से कराह रहा है, अपने आप को सुपर पॉवर जैसे महाशक्ति स्वयं भु राष्ट्र भी असहाय दिख रहा है,
ऐसे समय भारत की घरा पर हमें जन्म का सौभाग्य प्राप्त हुए है, आप व हम सभी आपसी भेद भाव को भुला कर अपने आरध्य सें दुआ,प्रार्थना / पेयर ,करें सकंट के काल बादल जल्द ही छट जायेगें, पुनः भारत की भुमि र्सव घर्म समभाव से गुंज मान होगा
विनोद तकिया वाला ,
स्वतंत्र पत्रकार,